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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


न्याय/नब़ी का नीति-निर्वाह मुंशी

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दूसरे दिन जैनब को जमा मसजिद में यथा विधि कलमा पढ़ाया गया।
कुरैशियों ने जब यह खबर पाई तब वे जल उठे। गजब खुदा का। इसलाम ने तो बड़े-बड़े घरों पर हाथ साफ करना शुरू किया। अगर यही हाल रहा तो धीरे-धीरे उसकी शक्ति इतनी बढ़ जायेगी कि उसका सामना करना कठिन हो जायगा। लोग अबुलआस के घर पर जमा हुए। अबूसिफियान ने, जो इस्लाम के शुत्रुओं से सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे (और जो बाद को इसलाम पर ईमान लाया), अबुलआस से कहा—तुम्हें अपनी बीवी को तलाक देना पड़ेगा।
अबुल०—हर्गिज नहीं।
अबूसि०—तो क्या तुम भी मुसलामन हो जाओगे?
अबु०—हर्गिज नहीं।
अबूसि०—जो उसे मुहम्मद ही के घर रहना पड़ेगा।
अबु०—हर्गिज नहीं, आप मुझे आज्ञा दीजिए कि उसे अपने घर लाऊं।
अबूसि०—हर्गिज नहीं।
अबु०—क्या यह नहीं हो सकता कि मेरे घर में रह कर वह अपने मतानुसार खुदा की बन्दगी करें?
अबूसि०—हर्गिज नहीं।
अबु०—मेरी कौम मेरे साथ इतनी भी सहानुभूति न करेगी?
अबूसि०—हर्गिज नहीं।
अबु०—तो फिर आप लोग मुझे अपने समाज से पतित कर दीजिए। मुझे पतित होना मंजूर है, आप लोग चाहें जो सजा दें, वह सब मंजूर है। पर मैं अपनी बीवी को तलाक नहीं दे सकता। मैं किसी की धार्मिक स्वाधीनता का अपहरण नहीं करना चाहता, वह भी अपनी बीवी की।
अबूसि०—कुरैश में क्या और लड़कियां नहीं हैं?
अबु०—जैनब की-सी कोई नहीं।
अबूसि०—हम ऐसी लड़कियां बता सकते हैं जो चांद को लज्जित कर दें।
अबु०—मैं सौन्दर्य का उपासक नहीं।
अबूसि०—ऐसी लड़कियां दे सकता हूं जो गृह-प्रबन्ध में निपुण हों, बातें ऐसी करें जो मुंह से फूल झरें, भोजन ऐसा बनाये कि बीमार को भी रुचि हो, और सीने-पिरोने में इतनी कुशल कि पुराने कपड़े को नया कर दें।
अबु०—मैं इन गुणों में किसी का भी उपासक नहीं। मैं प्रेम और केवल प्रेम का भक्त हूं और मुझे विश्वास है, कि जैनब का-सा प्रेम मुझे सारी दुनिया में नहीं मिल सकता।
अबूसि०—प्रेम होता तो तुम्हें छोड़कर दगा न करती।
अबु०—मैं नहीं चाहता कि प्रेम के लिए कोई अपने आत्मस्वतान्त्रय का त्याग करे।
अबूसि०—इसका मतलब यह है कि तुम समाज के विरोधी बनकर रहना चाहते हो। अपनी आंखों की कसम, समाज अपने ऊपर यह अत्याचार न होने देगा, मैं समझाये जाता हूं, न मानोगे तो रोओगे।

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